सूतपुत्र कर्ण की प्रेम कहानी की नायिका थीं द्रौपदी !

महाभारत युग हिन्दू धर्म के इतिहास का एक अहम समय हैजिसने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। इस ग्रंथ में अनेक कथाएं हैं जिन्हें गहराई से जान कर आज भी मनुष्य चकित हो जाता है। इससे भी ज्यादा अचंभित करते हैं इन कथाओं में छिपे अनजान तथ्य। ऐसे ही कुछ तथ्य जुड़े हैं पांच पांडवों की पत्नी पांचाली यानी कि द्रौपदी के स्वयंवर से। पांचाल के राजा द्रुपद की पुत्रीपांचाली या द्रौपदी का स्वयंवर महाभारत का एक अहम अध्याय है जिसके बाद इस युग ने एक अलग मोड़ युग ने एक अलग मोड़ लिया था। पांचाल में हुए इस स्वयंवर में ना केवल पांडव मौजूद थे बल्कि कर्ण भी उपस्थित थेलेकिन पांचाली द्वारा कर्ण को ठुकराया गया था। ऐसा नहीं था कि कर्ण किसी भी रूप में असमर्थ थेलेकिन पांचाली की पसंद तो केवल अर्जुन ही थे। लेकिन  यदि पांचाली  ऐसा ना करतीं तो महाभारत युग में उनकी कहानी कुछ और ही होती। शायद जिन मुश्किलों से वो गुजरी हैं उन्हें कभी भी उनका सामना ना करना पड़ता। महाभारत के कुछ तथ्य यह सबित करते हैं कि यदि द्रौपदी का विवाह पांडवों से ना होकर कर्ण से होता तो वह ज्यादा सुखमय जीवन व्यतीत करतीं।




लेकिन कैसेआइए जानते हैं द्रौपदी के पिता  राजा द्रुपद ने अपनी पुत्री का विवाह  राजकुमार अर्जुन से करने का फैसला किया  लेकिन वर्णावर्त में पांडवों की मृत्यु हो जाने जैसी बात सुनकर महाराज द्रुपद ने अपनी बेटी के विवाह के लिए स्वयंवर रचने की योजना बनाई। इस स्वयंवर में मीलों दूर से विभिन्न राज्यों के बुद्धिमान तथा कुशल राजा बुलाए गए। स्वयंवर में पांच पांडवों को भी बुलाया गया लेकिन इसके अलावा कर्ण भी इस स्वयंवर में उपस्थित हुए। कहा जाता है कि कर्ण तहे दिल से द्रौपदी को पसंद करते थे इसलिए उन्हें अपनी पत्नी बनाना चाहते थे। महाराज द्रुपद के अनुसार स्वंम्बर में एक शर्त राखी हुई थी जिसमे सभा  में मौजूद वीरो को एक कार्य सौंपा गया था द्रुपद  बोले ,“जो भी वीर सामने रखे धनुष को उठाकर उसे बांधकर ऊपर ऊंचाई पर बंधी मछली की आंख में पहली बार तीर चलाएगावही मेरी पुत्री द्रौपदी से विवाह करने के लायक होगा। यह प्रतिस्पर्धा इतनी आसान नहीं थी जितना बताया गया था। कार्य  में दिया गया धनुष एक खास धातु    से बनाया गया थाजिस कारण उसका वजन इतना ज्यादा था कि उसे उठाने के लिए शायद एक विशाल हाथी की जरूरत भी पड़ती। इसके अलावा ऊपर बंधी मछली की आंख में निशाना लगाने के लिए ठीक नीचे एक बर्तन में भरे गए पानी में  रही परछाई की सहायता लेनी थी। इस परछाई की मदद से ही निशाना लगाना था। इसके अलावा यह शर्त थी कि कोई भी उम्मीदवार एक से ज्यादा बाण का इस्तेमाल नहीं कर सकता था। पांचालीकोयह यकीन था कि स्वयंवर में अर्जुन के अलावा अन्य कोई भी व्यक्ति बेशक  शामिल किए गए भारी धनुष को उठाने में सफल हो जाएलेकिन मछली की आंख में सही निशाना नहीं लगा सकता है। पर उनकी परेशानी कर्ण की स्वयंवर में हुई उपस्थिति ने बढ़ा दी। माना जाता है कि कर्ण धनुष बाण चलाने में अर्जुन से भी ज्यादा कुशल थे। इसलिए वह आसानी से पांचाली को स्वयंवर में जीत सकते थे। लेकिन दूसरी ओर द्रौपदी तो केवल अर्जुन को ही अपने जीवन साथी के रूप में देख रही थी।



इसलिए अंत में पांचाली ने भरी सभा में कर्ण को लज्जित किया। उसने ऊंची आवाज में कहा, “मैं एक सूत पुत्र से कभी विवाह नहीं करूंगी यह सुन सभा में मौजूद हर एक व्यक्ति कर्ण का मजाक बनाते हुए ठहाकों के साथ हंसने लगा। कर्ण यह अपमान बर्दाश्त ना कर सके और वहां से चले गए। इसके बाद राजकुमार अर्जुन ने ही धनुष बाण पर नियंत्रण पा कर मछली की आंख में सही निशाना लगाया और पांचाली को स्वयंवर में जीत लिया। लेकिन पांचाली की दुविधा यहां समाप्त नहीं हुई। अंत में उसे केवल अर्जुन ही नहीं बल्कि उसके साथ अन्य चार पांडु भाइयों - युधिष्ठरभीमनकुल और सहदेव की भी पत्नी बनना पड़ा। वह सभी को पति होने का बराबर दर्जा देती और पांचों भाइयों के साथ संभोग करने के लिए भी बांटी जाती। यदि स्वयंवर में द्रौपदी का विवाह कर्ण से हो जाता तो उसे कभी भी किसी के लिए विभाजित होने की आवश्यकता ना होती। इंतना ही नहीं  अपने स्वामी में जिन गुणों को द्रौपदी ढूंढ़ती थी वे उन्हें पांच पांडवों में मिले तो जरूर लेकिन अलग अलग रूप में। जहां युधिष्ठिर अपने सिद्धांतों के लिए जाने जाते थे वहीं दूसरी ओर भीम बलशाली थे और अर्जुन महान धनुर्धर थे। इसके अलावा नकुल अपने शारीरिक आकर्षण के   लिए जाने जाते थे और सहदेव को अच्छी सूझबूझ के लिए माना जाता था। दूसरी ओर यह सभी  गुण अकेले कर्ण में मौजूद थे। कर्ण भीम की   तरह ताकतवर होने के साथ  साथ अर्जुन की तरह   धनुष विद्या में बेहद कुशल भी थे। केवल कुशल ही नहीं बल्कि कई बार उन्हें अर्जुन से ज्यादा सक्षम माना गया। वे काफी समझदारआकर्षक और नैतिक मूल्यों से भरपूर थे। यह विशेषताएं कर्ण को पांच पाण्डवों से ज्यादा सक्षम तो बनाती हैं लेकिन पांचाली की किस्मत को कुछ और ही मंजूर था जहां उन्हें विभिन्न दुखों को भोगना पड़ा।


पांच पाण्डवों से शादी कर के द्रौपदी जहां एक बड़े राज्य की महारानी कहलाईं वहीं हर कदम पर अपमान ने भी उनका रास्ता रोकने की कोशिश की। सबसे पहला अपमान था पांच पुरुषों की एक अकेली पत्नी होने का। हिन्दू मान्यताओं में एक ऐसी स्त्री जिसके एक से ज्यादा पति होंउसके चरित्र पर ढेरों अंगुलियां उठाई जाती हैंलेकिन फिर भी इसे संयोग ही कहें कि इसी हिन्दू इतिहास में एक स्त्री के पांच पति हुए। पांच पतियों पत्नी होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी पांचाली को। वह अपने सुख-दुख जहां हर एक पति से बांटतीं वहीं हर एक पति को बराबर   का समय देने के लिए भी मजबूर थीं द्रौपदी। वेद व्यास द्वारा पांचाली को एक वरदान दिया गया था कि उनका कौमार्य कभी भी भंग नहीं होगा। वे हर बार जिस भी पति से शारीरिक संबंध बनाएगीअंत में उनका कौमार्य वापस लौट आएगा अर्थात वे हमेशा पवित्र ही रहेंगी। लेकिन इसी के साथ ही व्यास द्वारा प्रत्येक पति को समय देने के लिए भी पांचाली का विभाजन किया गया था। कुछ माह अथवा वर्षों के लिए किसी एक पांडव के साथ रहने के लिए विवश थीं पांचाली। और फिर वह समय समाप्त होने पर उन्हें अन्य पाण्डव के पास भेज दिया जाता था। इस बीच कोई भी दूसरा पाण्डव भाई उन पर नजर नहीं रख सकता था।


यह पांचाली के लिए अपमान के समान था लेकिन समय के  सामने उन्हें झुकना ही पड़ा। पांचालीकी पहली पसंद केवल राजकुमार अर्जुन थे लेकिन उन्हें पांच भाइयों की पसंद बनना पड़ा। लेकिन यदि उनका विवाह कर्ण से हो जाता तो उन्हें इस अनादर का सामना ना करना पड़ता। कर्ण कभी चाह कर भी अपनी पत्नी को किसी अन्य के साथ ना बांटते। वे स्वयं पांचाली को खुश रखने का   हर संभव प्रयास करते और उन्हें एक सुखमय जीवन प्रदान करने का वायदा करते।दूसरी तरफ द्रौपदी के मन में केवल अर्जुन राज करते थे लेकिन अर्जुन के मन में श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा ने जगह बना ली थी। अर्जुन जिन्हें अपनी पत्नी द्रौपदी को दूसरे भाइयों के साथ बांटने का दुख सताता था उन्होंने सुभद्रा को अपनी प्रिय पत्नी का दर्जा दिया। अर्जुन-सुभद्रा के विवाह का दर्द द्रौपदी के लिए सबसे बड़ा था। लेकिन अगर द्रौपदी का विवाह कर्ण से होता तो कर्ण के लिए केवल द्रौपदी ही उनकी प्रिय होतीं।

यदि पांचाली का कर्ण से विवाह होता तो शायद उन्हें कभी भरी सभा में लज्जित ना किया जाता। वह पांडव ही थे जिनके कारण द्रौपदी का चीर हरण संभव हुआ। पांच पति होने के बावजूद भी द्रौपदी की रक्षा करने वाला उस समय कोई ना था। केवल एक श्रीकृष्ण ही थे जिन्होंने द्रौपदी को अपनी बहन मानते हुए उनकी रक्षा की औरसभा में अपमानित होने से बचाया। यह बात सत्य है की कौरवों तथा पांडवों के बीच हुए जुए के उस खेल में कौरवों द्वारा षडयंत्र रचा गया था। पांडव किस दिशा की ओर जा रहे थे उन्हें इस बात का अंदाजा भी ना था। लेकिन यह उनकी भूल थी कि एक खेल के चक्कर में उन्होंने अपनी पत्नी तक को दांव पर लगा दिया। दूसरी ओर इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि सभा में कर्ण भी कौरवों के साथ ही थे। कर्ण भी द्रौपदी का चीरहरणहोने से रोक ना सके बल्कि सभा में पांडवों को अपने कटु वचन से अपमानित करने का हर संभव प्रयास करते रहे। उस क्षण पांचाली को यह आभास हुआ कि उनके स्वयंवर के दौरान उन्होंने कर्ण को अपमानित किया था इसीलिए कर्ण इस बात का बदला ले रहे हैंलेकिन बाद में  भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को समझाया कि कर्ण के कटु वचन पांडवों की सोई हुई आत्मा को जगाने के  लिए थे। वे चाहते थे की कम से कम उनकी बुरी बातों का ही पांडवों के अहंकार पर असर हो जाए और वे उठकर अपनी पत्नी को बचाने का संघर्ष करेंलेकिन ऐसा हो ना सका। जब द्रौपदी को यह बात पता चली तो उन्हें एक समय के लिए काफी बुरा लगा। कहा जाता है कि अर्जुन कोसुभद्रा की ओर जाता देख द्रौपदी का मन काफी उदास हो गया था और दूसरी ओर कर्ण की सच्चाई जानकर उनके मन में कर्ण के लिए अच्छाई  गई थी। लेकिन यह बात कितनी सच है यह कोई नहीं जानता।




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