गीता – सार


गीता ज्ञान का भंडार है. गीता सभी वेदों और पुराणों में अहम स्थान रखती है. गीता ही इंसान को उसकी मंजिल तक ले जाने में सहायता करती है. गीता का सार बना पाना बेहद मुश्किल है.

  • क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? आत्मा नापैदा होती है, न मरती है।
  • जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है,वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भीअच्छा हीहोगा। तुम भूत का पश्चाताप नकरो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमानचल रहा है।
  • तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुमक्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमनेक्या पैदाकिया था, जो नाश हो गया? नतुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं सेलिया। जो दिया, यहींपर दिया। जो लिया,इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसीको दिया।
  • खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जोआज तुम्हारा है, कल और किसी का था,परसोंकिसी और का होगा। तुम इसे अपनासमझ कर मग्न हो रहे हो। बस यहीप्रसन्नता तुम्हारेदु:खों का कारण है।
  • परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुममृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एकक्षण में तुमकरोड़ों के स्वामी बन जाते हो,दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो।मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा,अपना-पराया, मनसे मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुमसबके हो।
  • न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर केहो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाशसे बना हैऔर इसी में मिल जायेगा। परन्तुआत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?
  • तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो।यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारेकोजानता है वह भय, चिन्ता, शोक सेसर्वदा मुक्त है।
  • जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान केअर्पण करता चल। ऐसा करने से सदाजीवन-मुक्तका आन्दन अनुभव करेगा।

No comments:

याद रखें यह 5 वास्तु मंत्र, हर संकट का होगा अंत

* वास्तु के अनुसार घर में पेड़-पौधे लगाने पर वे मानसिक शांति देते हैं। ये ध्वनि और विकिरणों को भी ग्रहण कर लेते हैं। ऐसा ही एक पौधा है मनी...